16 दिसम्बर की रात जब भी आती है, एक सन्नाटा सा हो जाता है मेरे दिमाग में। उस सन्नाटे में तुम्हारी चीखें आज भी मेरे कानों में शोर करती हैं। इतनी हैवानियत तुम्हारे साथ कैसे हो गई, निर्भया। तुम्हारे साथ जो हुआ, वो हमारी देश की गरिमा पर लगा एक कलंक है जो कभी नहीं मिटेगा, क्योंकि आज भी सब वैसा ही है। जो तुमने सहा, उसके लिए पूरा देश तुम्हारे साथ खड़ा हो गया था। हर औरत, हर माँ, हर पिता, हर भाई की आँखों में आंसू थे तुम्हारे दर्द के और इस विचार के कि कहीं हमारी बेटी या बहन के साथ ये हुआ तो क्या होगा। तुम्हारे साथ इस देश का हर इंसान खड़ा था, शायद उन दरिंदों के घरवाले भी भगवान से तुम्हारे इंसाफ की ही दुआ मांग रहे थे। हर कोई चाहता था तुम ठीक हो जाओ, जीयो, और उन दरिंदों को तुम्हारे सामने फाँसी लगे, पर ये नहीं हुआ। अपनी जीत देखने के पहले तुम्हारी ज़िंदगी ने दम तोड़ दिया था। उस दिन ऐसा लगा था जैसे कोई अपना ही दुनिया से चला गया था। जब तक लिख सकूंगी तुम्हारी याद में हर 16 दिसम्बर को कुछ लिखूँगी, क्योंकि शायद लिखने के अलावा मैं कुछ और कर भी नहीं सकती। क्योंकि जब सरकार और पुलिस हमारी बेटियों को आज भी नहीं बचा पा रही हैं, तो मैं क्या कर लूँगी? बस अपना दुःख लिखूँगी। तुम्हें याद करूँगी, तुम्हें जो दर्द सहना पड़ा उन दरिंदों की वजह से, उस दर्द को अपने शब्दों से मरहम लगाती रहूँगी, निर्भया।Thank you for reading.
Garima Soni
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