कल परिवार के साथ “द केरल स्टोरी” देखने का अवसर मिला| फिल्म देख के क्या महसूस हुआ वो तो शब्दों में बताना मुश्किल है| हा इतना जरूर कहूंगी की फिल्म देख के घर तो लौट आई पर फिल्म मेरे दिल और दिमाग में रिपीट मोड पर अभी भी चल रही है|
कल थिएटर से निकलते समय ये सोच रही थी कुछ तो जरूर लिखूंगी इस पे घर जाके फिर सोचा रहने देती हूं क्योंकि फिर वही बीजेपी कांग्रेस हिंदू मुस्लिम चालू हो जाएगा कमेंट में और जहां मैं दूसरी लड़कियों की सुरक्षा के बारे में सोच रही हूं वहा मेरे परिवार को मेरी सुरक्षा की चिंता सताने लगेगी| पर जब आज सुबह उठी तो लगा लड़की तो लड़की है ना चाहे हिंदू हो मुस्लिम हो या फिर किसी भी और धर्म की| राजनीति के मुद्दे पर हम सब अलग हो सकते हैं उसमें कोई तकलीफ नहीं है पर जहां बात देश की और देश की लड़कियों की सुरक्षा की आए वहाँ तो कम से कम हम इंसानियत दिखा सकते हैं ना? क्यों इतना मुश्किल हो गया है किसी भी मुद्दे को राजनीति और धर्म के चश्मे के बिना देखना? खैर मैं सिर्फ इतना ही कहूंगी एक बार ये फिल्म जरूर देखे कोई पॉलिटिशियन बोल रहा है इसीलिये नहीं बल्की आपकी बहन बीवी या फ्रेंड को कभी ये हैवानियत नहीं सहनी पड़े इसलिए| उनको ये पता होना जरूरी है कि अंजानो पे अंधा विश्वास करने से एक अच्छी जिंदगी कैसे बर्बाद हो सकती है| लड़कियों को किसी एक धर्म के लड़कों के प्रति सचेत ना करे बल्कि उन्हें हर उस इंसान के प्रति सचेत करे जो उन्हें तकलीफ में डाल सकता है| उन्हें ये जरूर सिखाएं कि भरोसा हर किसी पर आसनी से नहीं किया जाना चाहिए और घर का माहौल ऐसा रखे कि लड़कियों को कभी घर के बहार सहारा ना ढूँढना पड़े|
कही सुना था इस फिल्म के तथ्य ठीक नहीं हैं| 30000 नहीं 3 लड़कियों के साथ हुआ था ये| वाह क्या तर्क है| मतलब 3 लड़कियों के साथ कुछ गलत हो तो चलता है?
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