माफी माँग रही हूँ

 पिछले दो सालों में मेरे शब्दों को इतना प्यार मिला है कि शब्दो में उसका धन्यवाद नहीं कर पाउंगी। मुझे साराहा भी गया साथ में समझाया भी गया।


एक अनुभव यह भी हुआ - कुछ लोग बोलने लगे गरिमा हिंदी में भी लिखा करो हम भी पढेंगे। ये फरमान सर आंखों पर। और आज से ही ये कोशिश होगी कि हिंदी में भी कभी कभी लिखा जाए| वैसे मेरी हिंदी खराब नहीं है और ना ही मुझे हिंदी बोलने या लिखने में कोई शर्म आती है। बस इंग्लिश मीडियम कॉन्वेंट स्कूल में 14 साल की शिक्षा हुई है तो स्वाभाविक रूप से संचार के लिए विशेष रूप से लिखित संचार के लिए अंग्रेजी ही पहली भाषा बन गई| जब 5 विषय अंग्रेजी में और एक विषय हिंदी में पढ़ेंगे तो ये ही होगा ना? ये भी विचार मन में आता है कि मुझे तो पैरेंट्स ने इंग्लिश मीडियम में डाला था ना? 4 साल की उम्र में ये मेरा फैसला तो नहीं था ना? फिर बार बार क्यों सुनाया जाता है कि इंग्लिश वालों के लिए ही लिखती है तू।

अब यहां से इस कहानी को मेरी नहीं बल्की उन सब लोगों की बनाते हैं जिन्हे अक्सर कोई ना कोई जरूर बोलता है कि इंडिया में रहते हो इंग्लिश में होशियारी मत मारो। मैं अंग्रेजी की वकालत नहीं कर रही हूं। बस इतना कहना चाहती हु कि सच में हमारा दुर्भाग्य है कि हिंदुस्तान में आज भी कई राज्यो में हिंदी फर्स्ट तो छोड़ो सेकेंड लैंग्वेज भी नहीं है। उससे भी ज्यादा दुख की बात ये है कि हिंदी आज भी हमारी राष्ट्रीय भाषा नहीं है| हा हिंदी हमारी आधिकारिक भाषा जरूर है पर वो तो अंग्रेजी भी है| पर इस बारे में सब चुप है।

हमें जरूर कोशिश करनी चाहिए की हम हिंदी का प्रचार प्रसार ही ना करे पर ज्यादा से ज्यादा प्रयोग भी करें। मैं खुद आज से ही इस विषय में अपना योगदान जरूर दूंगी| पर मेरा ये भी मानना है कि अंग्रेजी हमें अंतरराष्ट्रीय स्तर पर और अंतर राज्य स्तर पर भी मदद करती है। अगर किसी व्यक्ति को दोनो ही भाषा अच्छे से आए तो यकीनन उससे मदद मिलती है|

अब जो बोलने जा रही हूं वो कुछ लोगो को अच्छा नहीं लगेगा, मैं उसके लिए पहली ही माफ़ी मांग रही हूं पर वो बात बोलनी अनिवर्या है| अक्सर सोशल मीडिया पर कुछ लोग हिंदी का समर्थन करते हुए अंग्रेजी की और अंग्रेजी बोलने वाले लोगो की मजाक उड़ाते हैं और अपनी पूरी शक्ति से उन्हें नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं। आश्चर्य मुझे ये जान के होता है कि वो लोग खुद अपने बच्चों को इंग्लिश मीडियम स्कूल में पढाते हैं। क्या ये दोगलापन नहीं है? सोशल मीडिया पे इंग्लिश में बोलने लिखने वालों को जो मन कहे कहो और फिर अपने बच्चों को बेस्ट इंग्लिश मीडियम स्कूल पढाओ? कितना सही है ना ये|

अंत में मैं ये ही कहूंगी कि हर इंसान, हर भाषा का सम्मान होना चाहिए| अगर किसी को ऊंचा दिखाने के लिए किसी को नीचा दिखाना पड़े तो हम माने या ना माने हम आगे की तरफ नहीं पीछे की तरफ बढ़ रहे हैं| हिन्दी इतनी कमज़ोर नहीं की अंग्रेजी से डरे। हिंदी को ऊंचा उठाने के लिए किसी और भाषा को नीचा दिखाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। अपने बच्चों को हिंदी सबसे पहले सिखाओ अंग्रेजी भी सिखाओ जो भाषा सिखानी है सिखाओ पर सबसे पहले ये सिखाओ की हर भाषा का सम्मान करो| इंसान की परिस्तिथिया आस पास का वातावरण और शिक्षा तय करती है कि उसे कौन सी भाषा अच्छे से आए लेकिन इंसान की मानसिकता इससे दिखती है कि वो अपनी भाषा सबसे बेहतर बताने में दूसरी भाषा का तिरस्कार ना करे।

मेरी इच्छा है मैं सिर्फ हिंदी अंग्रेजी ही नहीं बल्की गुजराती, मराठी, संस्कृत भी सिखु और कभी मन करें किसी दुसरे देश की भाषा सिखने का तो वो भी सिखु और उसके लिए मुझे अपने हिंदी से प्यार होने का सर्टिफिकेट किसी को नहीं देना पड़े।

आपकी सोच मुझसे अलग हो तो मैं उसका सम्मान करती हूं। आपको आपके विचार रखने हो इस पोस्ट पर तो जरूर रखना, मुझे भी कुछ सीखने मिल जाएगा। पर कृपया इसे राजनीतिक एजेंडा मत बना देना।

आपकी गरिमा
Regards
CA Garima Soni

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